Monday 21 March 2016

बड़े रंगीन हो जाते हैं, ये होली वाले दिन

                 






                     होली गीत
बड़े रंगीन हो जाते हैं , ये होली वाले दिन
जब खेलते हैं होली श्याम गोपियों के संग,

कितने शालीेन हो जाते हैं, ये फाल्गुन वाले दिन,
जब खेलते हैं होली कान्हा राधिका के संग,

बड़े रंगीन हो जाते हैं, ये होली वाले दिन,
जब खेलते हैं होली श्याम गोपियों के संग,

कितना मदहोश हो जाता हैं, गोपियों का तन- बदन,
जब गूँजती है ब्रज में मीठी बांसुरी की धुन,

कितने  बेजोड़ हो जाते हैं, ये रंगो वाले दिन,
हो जाता है रंगीला पानी और ये रंगीली पवन,

बड़े रंगीन हो जाते हैं, ये होली वाले दिन,
जब खेलते हैं होली कान्हा  राधिका के संग,

धरती ये ऐसे सजी है, कोई नई नवेली दुल्हन,
हर फिजायें रंग भरीं हैं, रंगो से है भरा चमन,

इन रंगभरी खुशबुओं से, महक उठता है ये गुलसन,
रंगो से भरा है ये आँगन ,हो रहे सब मस्त मगन,
रंग गया है हरकोई जैसे, मिल गए हो रंगो में अंग,

बड़े शालीेन हो जाते हैं, ये रंगो के मौसम,
जब खेलते हैं होली, प्रिय प्रेयसि के संग,

बड़े रंगीन हो जाते हैं, ये होली वाले दिन,
जब खेलते हैं होली, गिरधर गोरियों के संग,

कितने  शालीेन हो जाते हैं, ये फाल्गुन वाले दिन,
जब खेलते हैं होली, कान्हा राधिका के संग,

बड़े रंगीन हो जाते हैं, ये होली वाले दिन,
कितने शालीेन हो जाते हैं, ये फाल्गुन वाले दिन,
जब खेलते हैं होली, प्रिय प्रेयसि के संग,

  ~होली की हार्दिक शुभकामनाएं ~👏
                                         ~(संदीप कुमार)

                 धन्यवाद।

Saturday 19 March 2016

कुछ तो अभी बाकी है बंधु ,बस इतना ही नहीं काफी है



कुछ तो अभी बाकी है बंधु ,बस इतना ही  नहीं काफी है,
बस इतना ही नही काफी है बंधु ,कुछ तो है जो बाकी है ।

जो भी सपने तूने संजोये हैं, आशा के बीज जो बोये हैं,
उन सपनो को जीवंत करना शायद अभी भी बाकी है,
कुछ तो अभी बाकी है बंधु, बस इतना ही  नही काफी है।

हर कदम पर यहाँ कठिनाई है, इस  जीवन की यही एक  सच्चाई है ,
हर शाम यहाँ एक निराशा है, हर सुबह यहाँ एक आशा है ,
ये जीवन भरा है संघर्षों से, इन संघर्षों से भिड़ना बाकी है ,
कुछ तो अभी बाकी है बंधु, बस इतना ही नही काफी है ।



न कर तूं यूं  मन को इतना चिंतित, इन छोटी छोटी बातों से ,
बस कोशिश कर नहीं जाने दे, हर एक अवसर  अपने हाथों से,
हर लम्हा है अनमोल यहाँ, इन लम्हों को जीना बाकी है ,
कुछ तो अभी बाकी है बंधु, बस इतना ही नही काफी है।



न हो विचलित  बस चलते चल तू शूल भरी इन राहों में ,
तू सब्र कर तुझे ले लेंगी तेरी मंजिल अपनी बाहों में ,
उस मंजिल को पाने में बस थोड़ा सा ही चलना बाकी है,
कुछ तो अभी बाकी है प्यारे, बस इतना ही  नही काफी है।



अपनों से दूर हो कर भी  क्या कुछ  नही हमने  खोया है ,
माँ बाबा की प्यारी यादों में हर रोज ये दिल भी  रोया है,
उम्मीदें है उन्हें  हमसे कितनी,ये सोच रातों में न सोया है,
इन उम्मीदों को पूरा करने की, वो ख्वाहिश अभी भी बाकी है।


कुछ तो अभी बाकी है यारो,बस इतना ही नही काफी है,
बस इतना ही नही काफी है मित्रो, कुछ तो है जो बाकी है।

                                                                    -(संदीप  कुमार )

                                  धन्यवाद|

Thursday 17 March 2016

ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है







ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है,
बस एक बार वो तू बता दे मुझे,
यूँ खामखा मुझसे रूठी क्यों है, 
कोई तो जीने की वजह दे मुझे|


न जाने कितनी राहें तेरी हैं,
जो मेरी है डगर वो दिखा दे मुझे,
न जाने कितनी मंजिलें तेरी है,
जो है ठिकाना मेरा उसका पता दे मुझे|


न जाने कितनी पहेलियाँ तेरी है,
उनको बूझने का तू तजुर्बा दे मुझे,
न जाने कितनी चुनौतियाँ तेरी है,
उनसे जूझने का तू हौसला दे मुझे|

ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है,
बस एक बार वो तू बता दे मुझे,
यूँ खामखा मुझसे रूठी क्यों है,
कोई तो जीने की वजह दे मुझे|



अगर मैं कभी हँसना जो चाहूँ,
तो जोर जोर से तू हँसा दे मुझे,
अगर किसी गम में रोना मैं चाहूँ,
तो फूट- फूट कर के रुला दे मुझे|

वैसे तो सभी से मैं अंजान हूँ, 
जिन्दा हो करके भी मैं तो बेजान हूँ,
नही चाहिए मुझको दिखावा किसी का,
जो सचमुच मेरा है, उससे मिला दे मुझे|


ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है,
बस एक बार वो तू बता दे मुझे,
यूँ खामखा मुझसे रूठी क्यों है,
कोई तो जीने की वजह दे मुझे|


अगर मुझको कोई दगा देना चाहे,
मेरे अरमानों से खेलने लगे तो, 
तू चुपके से आ कर जता दे मुझे|

अगर मैं किसी से रूठने लगूँ तो,
उसके दिए जख्मों से टूटने लगूँ तो,
तू कैसे भी सम्भलना सिखा दे मुझे|

मै एक इंसान हूँ दिल से नादान हूँ,
ग़लती से किसी का भी दिल मैं दुखाऊँ,
जो भी चाहे तू खुल के सजा दे मुझे|



ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है,
बस एक बार वो तू बता दे मुझे,
यूँ खामखा मुझसे रूठी क्यों है,
कोई तो जीने की वजह दे मुझे|


  ऐ जिन्दगी!
लगता है तू सच में एक पहेली सी है,
भीड़ होते हुये भी कितनी अकेली सी है,
दुःख-सुख, खुशी और गम तेरे मेहमान है,
सब पता है मुझको फिर भी दिल परेशान है,

जिन गुत्थियों में अब तक उलझा हुआ हूँ मैं,
ऐसी उलझनों से तू सुलझा दे मुझे,
मैं कर सकूँ हासिल हर एक मुकाम को,
सम्भव हो तो इतना काबिल तू बना दे मुझे|



ऐ जिन्दगी! तेरा राज क्या है,
बस एक बार वो तू बता दे मुझे,
यूँ खामखा मुझसे रूठी क्यों है, 
कोई तो जीने की वजह दे मुझे|

                                      ~(संदीप कुमार)


                                            धन्यवाद |