Wednesday 23 September 2015

आज इस चहरे पर इतनी खामोशी क्यों है





आज इस चहरे पर इतनी खामोशी क्यों है,
आँखों में नमी और ये  दिल मायूस  क्यों है,

टुट गया है हसीन सपना शायद इस दिल का
या फिर किसी अपने से दूर होने का गम है,
आज इस चेहरे  पर इतनी खामोशी क्यों है,
आँखों में नमी और ये दिल मायूस क्यों है।


हमेशा मुस्कुराने वाला वो चेहरा आज इतना बेजान क्यों है,
कहाँ हो गयी हैं ओझल वो रंगीन अदायें इसकी,
महक जाती हैं फिजायें सारी गुनगुनाने से जिसकी,
कठिनाइयाँ तो हमेसा रहेंगी इस जीवन में,
कभी खत्म न होने वाली परेशानियों से इतना परेशान क्यों है।
आज इस चेहरे पर  इतनी खामोशी क्यों है,
आँखो में नमी और ये दिल मायूस क्यों है।



सबकुछ तो है पास मेरे ,सब मेरे अपने तो है  साथ मेरे ,
हर रोज एक नया तोहफा देने वाली ये जिंदगी आज इतनी "बेनूर" क्यों है,
जो भी हसरतें हैं इस दिल की, हर मुकाम को हाशिल करने की,
उनमें हौसला और जूनून आज इतना कमजोर क्यों है,
आज इस चेहरे पर इतनी खामोशी क्यों है,
आँखो में नमी और ये दिल मायूस क्यों है।



आखिर माजरा क्या है इस दिल का,जो बिल्कुल समझ ही नही आया,
वो छिपा राज क्या  है इसमें, जो अब तक खुल ही नही पाया,
दिल तो एक बच्चा है, नादान है थोड़ा कच्चा है,
इसकी बचकानी बातों से इतना बेचैन  क्यों है,
आज इस चेहरे पर इतनी खामोशी क्यों है,
आँखो में नमी और ये दिल मायूस क्यों है।

                                                          -(संदीप कुमार लोधी)
                         धन्यवाद।










Friday 18 September 2015

भारत के वीर सपूत



आती है जब भी याद उन वीर शहिदों की,
 लगने लगता है सबकुछ खिला -खिला,
हो जाता हूँ मैं मदमस्त मगन,जैसे देती है मदिरा पिला -पिला,
नहीं रहता है कोई शिकवा उनसे ,नहीं रहता है कोई गिला- गिला।


गर याद करें हम उनकी कुर्बानी को,जो देती है सबको रुला -रुला ,
न पाया उन्होंने चैन कभी, आराम भी न उनको मिला- मिला।

ये देशभक्ति थी उन वीरों की , इस देश के लाल सपूतों की ,
जो अंदर उनके चिंगारी ने , दुश्मन को दिया था जला- जला ।

ये चिंगारी थी जो भड़की थी , उन अंग्रेजो के अत्याचारों से ,
जो निकली थी ज्वाला बनकर देने उनको पिघला- पिघला ।

एक तूफानी सी चाहत थी बस आजादी को पाने की ,
उस आजादी की ख्वाहिश में हर दीपक था उजला- उजला ।

हाँ थे वो सच्चे देशप्रेमि , था स्वतंत्रता जिनका सपना ,
उन वीरों के बलिदानों पर नतमस्तक होने मैं चला- चला ।

अब देखो जरा इस देश की हालत , क्या होनी थी क्या हो गयी है,
जो था सपना उन वीरों का, हो गया है सब धुंधला- धुंधला ।

यहाँ आज भी लोग अशिक्षित हैं, परेशान हैं वो भृष्टाचारों से ,
मानवता का कोई नाम नही, डरते हैं इंशान - इंशIनों से।

यहाँ आज भी कई भूखे बच्चे  रोते हैं खाना खाने को,
माँ ये कहकर देती बहला, बेटा अभी सूरज नही है  ढला- ढला।

यहाँ आज भी औरत अशुरक्षित है, असहाय भी है  अशिक्षित भी ,
बचती है कई वो नजरों से ,कई वारों से अत्याचारों से।

आज दिन तो है त्योहारों का, पर आँख ये कियों भर आई है ,
शायद लहराते झंडे ने उन वीरों की याद दिलाई है ।

मैं कहता हूँ आजाद हो तुम ,आजाद हो तुम ,आजाद हो तुम ,
इस आजादी के पीछे छिपे हुए, बलिदानों को भूल न जाना तुम ।

उठो हुआ है सुर्योदय, कुछ नाम हो ऐसा काम करो ,
ये जीत मिली है मुश्किल से, अभिमान नही सम्मान करो |


                 जय हिन्द , जय भारत
             भारत माता की जय!

  

                                                                          -(संदीप कुमार लोधी)
धन्यवाद ।  

Wednesday 16 September 2015

कुछ तो अभी बाकी है बंधु, बस इतना ही नहीं काफ़ी है

     @@कुछ तो अभी बाकी है@@



कुछ तो अभी बाकी है बंधु ,बस इतना ही  नहीं काफी है ,
बस इतना ही नही काफी है बंधु ,कुछ तो है जो बाकी है ।



जो भी सपने तूने संजोये हैं , आशा के बीज जो बोये हैं,
उन सपनो को जीवंत करना शायद अभी भी बाकी है ।
कुछ तो अभी बाकी है बंधु , बस इतना ही  नही काफी है।



हर कदम पर यहाँ कठिनाई है , इस  जीवन की यही एक  सच्चाई है ,
हर शाम यहाँ एक निराशा है , हर सुबह यहाँ एक  आशा है ,
ये जीवन भरा है संघर्षों से , इन संघर्षों से भिड़ना बाकी है ,
कुछ तो अभी बाकी है बंधु, बस इतना ही नही काफी है ।



न कर तूं यूं  मन को इतना चिंतित , इन छोटी छोटी बातों से ,  
बस कोशिश कर नहीं जाने दे, हर एक अवसर  अपने हाथों से,
हर लम्हा है अनमोल यहाँ , इन लम्हों को जीना बाकी है ,
कुछ तो अभी बाकी है बंधु , बस इतना ही नही काफी है।



न हो विचलित  बस चलते चल तू शूल भरी इन राहों में ,
तू सब्र कर तुझे ले लेंगी तेरी मंजिल अपनी बाहों में ,
उस मंजिल को पाने में बस थोड़ा सा ही चलना बाकी है,
कुछ तो अभी बाकी है प्यारे, बस इतना ही  नही काफी है।



अपनों से दूर हो कर भी  क्या कुछ  नही हमने  खोया है ,
माँ बाबा की प्यारी यादों में हर रोज ये दिल भी  रोया है, 
उम्मीदें है उन्हें  हमसे कितनी ,ये सोच रातों में न सोया है,
इन उम्मीदों को पूरा करने की, वो ख्वाहिश अभी भी बाकी है।




कुछ तो अभी बाकी है यारो,बस इतना ही नही काफी है।
बस इतना ही नही काफी है यारो, कुछ तो है जो बाकी है ।




धन्यवाद।